पतंजलि(दिव्य योग-दिव्य लाइफ) आदर्श ग्राम व ग्रामोद्योग, देश को समर्पित


आप मदतकर्ता का विशेष धन्यवाद--1)श्री ठाकुर2)मनोज खरबड़े(सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर)3)श्री आंबाड़ारे(बैंक मेनेजर, ब्रम्हपुरी)

Thursday 19 January 2012

चिड़िया
चिड़िया दुर्लभ होती जा रही है.
11 Dec 2011



   
हम लोगों में से बहुत से लोगों का बचपन सुबह-सुबह धूप में इधर-उधर फुदकती, चहकती एक छोटी से सुन्दर चिड़िया को देखते बीता है. कुछ साल पहले अमूमन हर घर-आँगन में दिखाई पड़ने वाली अपनी सी घरेलू गौरैया, अब ढूँढ़े से भी नहीं दिखती. पर्यावरण को होने वाली मानवजन्य क्षति की एक और मिसाल बनने जा रही यह नन्ही-सी चिड़िया सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में तेजी से पिछले कुछ सालों में गौरैया की संख्या में बड़ी कमी देखी गई है. लगभग पूरे यूरोप में सामान्य रूप से दिखाई पड़ने वाली इन चिड़ियों की संख्या अब घट रही है. हालात इतने खराब हो गए हैं कि नीदरलैंड (हॉलैंड) में इनकी घटती संख्या के कारण इन्हें रेड लिस्ट में रखा गया है. कमोबेश यही हालत ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, चेक गणराज्य, बेल्जियम, इटली तथा फिनलैंड के शहरी इलाकों में दर्ज की गई है.
विश्वभर की चहेती, लगभग पूरे विश्व में चहचहाने वाली इस चिड़िया का मूल स्थान एशिया-यूरोप का मध्य क्षेत्र माना जाता है. मानव के साथ रहने की आदी यह चिड़िया मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ विश्व के बाकी हिस्सों में जैसे उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका, दक्षिणी अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैंड में भी पहुँच गई.
गौरैया को एक बुद्धिमान चिड़िया माना जाता है. इसकी खासियत है कि यह अपने को परिस्थिति के अनुरूप ढालकर अपना घोंसला, भोजन उनके अनुकूल बना लेती है. अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण यह विश्व में सबसे ज्यादा पाई जाने वाली चहचहाती चिड़िया बन गई.
गौरैया बहुत ही सामाजिक पक्षी है और ज्यादातर पूरे वर्ष झुंड में उड़ती है. एक झुंड 1.5-2 मील की दूरी तय करता है, लेकिन भोजन की तलाश में अकसर 2-5 मील भी उड़ लेती है. गौरैया का प्रमुख आहार अनाज के दाने, जमीन में बिखरे दाने तथा कीड़े-मकोड़े हैं. इसकी कीड़े खाने की आदत के चलते इसे किसानों की मित्र माना जाता है वहीं खेतों में डाले गए बीजों को चुगकर यह खेती को नुकसान भी नहीं पहुँचाती.
कल्पना पालकीवाला
(((((((((((((((((())))))))))))))))

गौरैया का पुनर्वास

कान्तिकुमार जैन



सुबह-सुबह धूप में फुदकती-चहकती गौरैया अब अमूमन दिखाई नहीं पड़ती. यह नन्ही-सी चिड़िया दुर्लभ होती जा रही है. गौरैया को लेकर चर्चित संस्मरणकार कांतिकुमार जैन का संस्मरण- बचपन में ही जिन पक्षियों से मेरी पहचान हो गई थी, उनमें गौरैया और कौआ प्रमुख हैं. मुझे गौरैया अच्छी लगती है. सहज, शालीन, निराभिमानी और प्रसन्न. वह कोई शोर नहीं करती, जबरदस्ती स्वयं को आप पर लादती है. वह घरेलू पक्षी है- अहिंसक और शांतिप्रिय. दूसरों की भावनाओं का खयाल रखने वाला कौआ भी घरेलू पक्षी है, पर वह उद्घत और कर्कश है. आप उसका भरोसा नहीं कर सकते. कृष्ण नंद जब आंगन में खेल रहे हैं- माखन रोटी खाते हुए और कौए ने क्या किया ? ‘हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी.यह आजकल की चेन स्नैचिंग की तरह का घटिया काम था. गौरैया ऐसा नहीं करती. कौआ बोलता भी तो कैसा है- कांव, कांव कर्कश. गौरैया मृदुभाषिणी है. बहुत हुआ तो चीं-चीं करेगी. अंग्रेजी मेंटी वी टुट टुट.हिन्दी के प्रकृतिप्रेमी कवि सुमित्रानंदन पंत की चिड़ियाटी वी टुट टुटबोलती है. इन दिनों लोकप्रिय नेताओं और अभिनेताओं के जो ट्विटर छपते हैं, वे यही हैंटी वी टुट टुट.कौआ किसी के सिर पर बैठ जाए तो बड़ा अपशगुन होता है. गौरैया के साथ ऐसा नहीं होता. वह तो दो वियोगियों को मिलाने वाला पक्षी है- जायसी ने गौरैया को प्रमाण पत्र दिया है–‘जेहि मिलावै सोई गौरवा.गौरैया के लिए मेरे मन में बड़ा प्यार है. बचपन में मैंने एक कहानी पड़ी थी. एक राजा की कहानी पर मुझे अब लगता है कि उस कहानी का शीर्षक होना चाहिए था- एक गौरैया की कहानी. गौरैया ने कैसे अपनी अक्ल और लगन से एक किसान की जान बचाई थी और राजकुमारी से उसका ब्याह  करवाया था. आप भी सुनें- एक राजा था, कहानियां सुनने का बेहद शौकीन, पर उसकी एक शर्त होती थी, कहानी ऐसी हो, जो कभी खत्म हो. यदि कहानी खत्म हो गई तो कहानी सुनाने वाले का सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा. पर यदि कहानी ऐसी हो, जिसका कभी अंत ही हो तो पुरस्कार भी बड़ा था. आधा राज्य और राजा की एकमात्र सुन्दर बेटी से विवाह. राज्य के और बाहर के भी अनेक प्रतिस्पर्धी आए. कोई एक रात कहानी कह पाया कोई दो रात. तीन-चार रातों तक कहानी सुनाने वाले भी आए, पर सबका अंत एक ही होता, सिर धड़ से अलग कर दिया जाता. पर आधे राज्य की और उससे बढ़कर राजकुमारी के पाणिग्रहण की संभावना इतनी आकर्षक थी कि लोग सिर हथेली पर रखे खींचे चले आते और बाजी हारकर प्राण गंवा बैठते. राजा के राज्य में एक युवा किसान भी था. बड़ा विदग्ध, धैर्यवान, समझदार और चतुर. उसने एक रणनीति बनाई और चला आया राजा को कहानी सुनाने. लोगों ने लाख मना किया, पर वह युवक इतना आत्मविश्वास दीप्त था कि जैसे उसे पता हो इस पूरे प्रसंग का अंत क्या होगा? उसने कहानी शुरू की- एक था राजा. राजा ने टोका, तुमको कहानी की शर्त तो पता है ! कहानी खत्म हुई कि तुम गए काम से. युवक ने राजा को शर्त के उत्तरार्ध की याद दिलाई. राजा ने हुंकारी भरी. युवक ने कहानी का सिरा पकड़ा-
एक था राजा . उसके राज्य की धरती बड़ी उर्वर थी. उसमें बहुत धान होता. राजा ने राज्य में बड़े-बड़े भंडार बनवा रखे थे. उन भंडारों में धान इकट्ठा की जाती. राज्य में सूखा पड़े, अकाल आए तो भी कोई भूखा मरे. प्रजा तो प्रजा, उस राजा के राज्य में पशु-पक्षी भी बड़े सुखी थे. गौरैया तो जब चाहती, भंडार में आकर दाना ले जाती. एक दिन एक गौरैया आई और भंडार से एक दाना लेकर उड़ गई- फुर्र. फिर एक चिड़िया और आई और एक दाना लेकर उड़ गई- फुर्र. फिर एक चिड़िया और आई और एक दाना लेकर उड़ गई- फुर्र. राजा इस फुर्र-फुर्र से उक्ता रहा था, बोला, ‘कहानी आगे बढ़ाओ.भावी दामाद बोला, ‘कैसे बढ़ाएं? राजा के राज्य में धान की कमी थी, गौरैयाओं की.उसने फिर फुर्र-फुर्र शुरू  की. एक रात बीती, दूसरी बीती, तीसरी के बाद चौथी आई. अब राजा को गुस्सा गया, कहानी आगे बढ़ा, नहीं तो तेरी गर्दन धड़ से अलग हो जाएगी. किसान चतुर था. उसने कहा शर्त तो यही है कि जब तक कहानी खत्म हो, तब तक आप कुछ नहीं कर सकते. उसने फिर शुरू किया- एक गौरैया आई और एक दाना लेकर उड़ गई- फुर्र. राजा को पसीना गया. समझ गया कि इस बार किसी चतुर आदमी से पाला पड़ा है. आखिर में हार कर राजा ने उस चतुर युवक को अपना आधा राज्य सौंप दिया और राजकुमारी के साथ उसके सात फेरे करवाए.
बचपन की यह कहानी मेरा पीछा नहीं छोड़ती. मैंने इस कहानी से यह सीखा कि आदमी में धैर्य हो और वह थोड़ी समझदारी से काम ले तो जीत उसी की होती है. उसके सहायक  भी भरोसे के होने चाहिए. गौरैया आदमी की सबसे अच्छी दोस्त है. वह संकट में आपका साथ देती है. चीन में वहां के नेताओं ने हरित क्रांति के फेर में एक  नारा दिया था- ‘एक गौरैया मारो और एक चवन्नी ले जाओ.एक चवन्नी के लालच में वहां की गौरैया की आबादी बहुत कम हो गई. फलस्वरूप खेती के दुश्मन  कृमि-कीटों की संख्या बढ़ गई. चीनी नेताओं को अपनी गलती समझ में आई. उन्होंने अपनी नीति बदली और देश में कृषि उत्पादन की वुद्घि के लिए उन्हें  गौरैयाओं का पुनर्वास करना पड़ा.
बचपन की प्यारी गौरैया का मैं कुछ भला कर सकूं, इसका मौका पिछले साल मुझे अनायास ही मिला. विगत वर्ष सितंबर-अक्टूबर की एक सुबह मैंने देखा कि मेरे घर की बैठक झड़ चुकी थी, फिर उसमें खिड़की के नीचे ये तिनके कहां से आए? पत्नी ने बताया कि ये तिनके उस घोंसले के हैं, जो गौरैया इन दिनों खिड़की की मच्छर जाली और कांच के बीच बना रही है. चिड़िया अपनी चोंच में एक तिनका दबाकर लाती और बड़ी जुगत से खिड़की की मच्छर जाली और कांच के बीच जमाती. उसका चिड़ा भी इस काम में उसकी मदद कर रहा था. मैंने कहा कि उसका घोंसला अलग करो, इससे बैठक की साफ-सफाई में दिक्कत होती है, पर पत्नी मुझसे सहमत नहीं हुई. पत्नी ने बताया कि पिछले साल चिड़िया ने़ अपना घोंसला सामने के  प्रवेश द्वार पर लगी चमेली में बनाया था, पर जब चमेली से आंगन में कचरा बढ़ने लगा तो चमेली का वितान अलग करना पड़ा था. वितान अलग हुआ तो गौरैया का घोंसला भी उजड़ गया. अब गौरैया दंपत्ति अपने आशियाने के लिए सुरक्षित स्थान की तलाश में था. लगता है उसे खिड़की के कांच और मच्छरजाली के बीच का ठिकाना सुरक्षित लगा. अब उसे उजाड़ना ठीक नहीं. घोंसला मिटेगा तो बेचारी के अंडे कहां होंगे? वह आसन्न प्रसवा है. फिर उसके चूजे कहां जाएंगे?
पत्नी गौरैया के मातृत्व को लेकर चिंतित थी. मुझे उसकी चिंता सही लगी. मुझे लगा सुरुचि और व्यवस्था के नाम पर किसी का घर-बार उजाड़ना ठीक नहीं. हमने उस साल घर की पुताई नहीं करवाई. पुतैया ने कहीं घोंसले को उखाड़ दिया तो, वहां कोई खतरा मोल नहीं लिया जा सकता. एक दिन सबेरे हम लोग चाय पी रहे थे कि घोंसले से चीं-चीं की आवाजें आईं. गौरैया के अंडे फूट गए थे. मां प्रसन्न थी, पिताजी भी अपने पितृत्व की खुशी में फुदक-फुदककर नाच रहे थे. पत्नी ने आंगन में एक सकोरे में पानी भर दिया और मुरमुरे फैला दिए थे.
अम्माजी आतीं, चोंच में दाने समेटतीं और चूजों को दाना खिलातीं, उसे चोंच में भरकर पानी ले जाते भी हमने यह चोंचलेबाजी देखी. पर यह चोंचलेबाजी बहुत दिनों तक नहीं चली. चूजे बड़े हो गए, वे अपने पर खोलने लगे, घोंसले से बाहर उड़ने लगे, खुद दाने चुगने लगे और चोंच भी तर करने लगे. चिड़िया और चिड़े ने  उन्हें इस लायक बना दिया कि वे अपनी देखरेख स्वयं कर सकें.
एक दिन हमने देखा गौरैया का आशियाना खाली है. अब हमारी बैठक में तिनके नहीं गिरते. अब हम खिड़की के पल्ले खोलने लगे हैं. थोड़ी-सी संवेदना से हमने गौरैया की एक पीढ़ी को बचा लिया. एक विस्थापित गौरैया का पुनर्वास कर हमें बड़ी खुशी हुई. पत्नी ने उसके बाद यह नियम ही बना लिया है कि वह रोज सबेरे आंगन में रखे सकोरे में पानी भर दे और नीचे मुरमुरे, कनक बिखेर दे. आओ गौरैया आओ, पानी पियो और दाना खाओ. आखिर तुमने एक युवा की जान बचाई और राजकुमारी से उसकी शादी करवाई थी. उस किसान का जो तुमने भला किया था, उसका प्रतिदान संभव नहीं है, पर तुम्हारे लिए हम जो भी थोड़ा-बहुत कर सकें, हमें करना चाहिए.
(((((((((((((())))))))))))
गोरैया का घरौंदा 

-देहरादून से महेश पाण्डे
शेक्सपीयर के हैमलेट छायावादी कवियत्री महादेवी वर्मा की कविताओं की पात्र रही गोरैया उत्तराखंड से विलुप्त होती जा रही है. कभी घर-आंगन में चारों ओर चहकने वाली इस चिड़िया की फिक्र अब भारत सरकार को भी सता रही है. इस चिड़िया के घरौंदों को फिर से आबाद करने के लिए कई स्वयंसेवी संस्थाओं ने भी सरकार से हाथ मिलाए हैं.
ऐसा ही प्रयास उत्तराखंड की 'आर्क' नामक संस्था ने भी किया है. आर्क यानी 'एक्शन एंड रिसर्च फॉर कन्जर्वेशन इन हिमालयाज' ने विश्व गोरैया दिवस के मौके पर उत्तराखंड में घोंसला बनाने का एक कार्यक्रम शुरू किया है. इसके तहत लोगों में आकर्षक घोंसलों को बांट कर उनसे इस चिड़िया के संरक्षण की अपील की गई है.
आर्क में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले प्रतीक पंवार बताते हैं कि दो साल पूर्व जब उन्हें यह कार्यक्रम शुरू करने का खयाल आया तो उन्होंने इसका फील्ड ट्रायल करवाया और योजना की संभावित सफलता की जांच की. अपने घोंसलों की बाबत वह कहते है, 'यह घोंसला मासूम पक्षी गोरैये के अंडों को शिकारी पक्षियों से बचाने एवं इनकी वंशवृद्धि में सहायता पहुँचाने के उद्देश्य से बनाया गया है.
साथ ही, इससे पक्षी को निवास के लिए एक सुरक्षित स्थान मिलेगा.' इस कार्यक्रम को व्यापक रूप देने कि लिए संस्था ने कार्नेल लैब्स ऑफ ऑर्निथोलॉजी (यूएसए), नेवर फॉर इग्वर सोसायटी, इकोसिस एक्शन फाउंडेशन (फ्रांस), एवन वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट, दुधवा लाईव और बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी से जुड़ने की भी ठानी है. भारत सरकार ने भी इसके संवर्धन के लिए तीन वर्षीय परियोजना शुरू की है.
पक्षी विशेषज्ञों का मानना है पक्के मकान बनने और बाग-बगीचों के उजड़ने से इस पक्षी की संख्या दिनोंदिन कम होती जा रही है. गढ़वाल विश्वविद्यालय के डॉ. एम.पी.एस. बिष्ट का कहना है कि यह पक्षी उत्तराखंड की लोकगाथाओं का प्रिय पात्र रहा है लेकिन हमारे ग्रामीण परिवेश के बदल जाने से यह पक्षी पहले घरों से बेदखल हुआ और अब इसके ओझल हो जाने के संकेत मिल रहे है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि इस चिड़िया की कमी के लिए आधुनिक कीटनाशकों एवं भोजन की कमी बहुत हद तक जिम्मेदार हैं. आधुनिक उपकरणों से उत्पन्न रेडियो तरंगों के विनाशकारी विकिरण के प्रभाव से इसके अंडों से बच्चे निकलने बंद हो गए हैं. वायुमंडलीय प्रदूषण से भी इसकी आबादी नष्ट हो रही है. मानव आबादी के आस-पास, घर की छत पर और पेड़ों की टहनियों पर घोंसला बनाकर मनुष्य के बच्चों के साथ खेलने में व्यस्त रहने वाली गोरैया अब अस्तित्व के संकट से जूझने पर विवश है.
यूँ तो देश का वाइल्ड लाइफ एक्ट इस चिड़िया की सुरक्षा की बात करता है लेकिन हकीकत में इन पक्षियों पर बहुत कम शोध हुए हैं. पक्षियों के सर्वेक्षण का कोई व्यवस्थित तंत्र नहीं है. इनकी संख्या और स्वास्थ्य आदि से जुड़े स्पष्ट आंकड़े उपलब्ध नहीं है. दूसरे देशों में इस पर ध्यान दिया जा रहा है. ब्रिटेन में घरेलू गोरैयों की संख्या इस हद तक घटी है कि अंग्रेजों ने इस पक्षी को अपने रेडडाटा बुक में स्थान दिया है और इसके संरक्षण के प्रयास शुरू कर दिए हैं.
गनीमत है कि हमारे यहाँ भी अब प्रयास शुरू हुए हैं. हमारे देश में गोरैया सभी राज्यों में समान रूप से पाई जाती है. हिंदी-भाषी क्षेत्र में इसे गोरैया, तमिलनाडु और केरल में कुरूवी, तेलगु में पिछुका, कन्नड़ में गुब्बाची, गुजराती में चकली, मराठी में चिमनी, पंजाबी में चिरी, उड़ीसा में घरछतिया, पश्चिम बंगाल में धन पाखी, सिंधी में झिरकी नाम से जाना जाता है.
अंग्रेजी में गोरैया का 'स्पैरो' नामकरण कार्ल लीनियस ने किया था. कार्ल मॉडर्न बायोलॉजिकल टेक्सोनोमी के संस्थापक थे. इसके चुलबुले स्वभाव के कारण उन्होंने इसको स्पैरो नाम दिया.

No comments:

Post a Comment