सोया दूध को सोयाबीन दूध या सोया रस या सोया शरबत/पेय भी कहा जाता है. यह सोयाबीन से बना एक पेय है. ये तेल, पानी, और प्रोटीन का एक स्थिर पायस है, जो सूखे सोयाबीन को भिगो कर पानी के साथ पीस कर बनाया जाता है. सोया दूध में लगभग उसी अनुपात में प्रोटीन होता है जैसा कि गाय के दूध में: लगभग 3.5%, साथ ही 2% वसा, 2.9% कार्बोहाइड्रेट और 0.5% राख. सोया दूध घर पर ही पारंपरिक रसोई के उपकरणों या सोया दूध मशीनसे बनाया जा सकता है.
सोया दूध के जमे हुए प्रोटीन से टोफू बनाया जा सकता है, जैसे डेयरी दूध से पनीर बनाया जा सकता है.
प्रोटीन युक्त सोया मिल्क गाय भैंस के दूध का बहुत अच्छा विकल्प है. बहुत से लोग मैडिकल कारण की वजह से सामान्य दूध प्रयोग में नहीं लाते है या वे लोग जो जानवरो से प्राप्त किये हुये पदार्थ नहीं खाते पीते, या एसे बच्चे जिनमें लेक्टोज से परेशानी होती है, उनके लिये तो सोया मिल्क ही आसरा है.
उत्पत्ति
सोया दूध उत्पादन का प्राचीनतम प्रमाण चीन में 25-220 ई. के आसपास मिलता है, जहां एक रसोईघर के दृश्य में दूध सोया का उपयोग एक पत्थर की पटिया पर उत्कीर्ण है. ये ई.82 की वांग चोंग की पुस्तक लुन्हेंग के फोर टैबू नाम के अध्याय में भी दिखता है, ये संभवतः सोया दूध का पहला लिखित रिकॉर्ड है. सोया दूध के साक्ष्य की संभावना 20 वीं सदी के पहले दुर्लभ है और इससे पहले इसका व्यापक उपयोग असंभव है.
प्रचलन
भारत में भी ये पेय धीरे धीरे लोकप्रिय होता जा रहा है. सोया मूलतः 1935 में महात्मा गांधी द्वारा व्यवहार में लाया गया था. आजकल, यह व्यापक रूप से टेट्रापैक में विभिन्न ब्रांडों जैसे स्टेटा के द्वारा बेचा जा रहा है.
सोयाबीन का दूध न्यूट्रीसियस होते हुये भी घर में बनाने में काफी सस्ता पड़ता है. 1 लीटर सोयाबीन दूध बनाने के लिये लगभग 125 ग्राम सोयाबीन की आवश्यकता होती है. (दिल्ली में सोयाबीन के दाने लगभग 40 से 45 रुपये प्रति किलो में उपलब्ध हैं.) आईये आज सोयाबीन मिल्क (Soybean Milk) बनायें.
आवश्यक सामग्री -
- सोयाबीन - 125 ग्राम (आधा कप से अधिक)
- पानी
विधि
सोयाबीन को साफ कीजिये, धोइये और रात भर या 8 से 12 घंटे के लिये भीगने दीजिये.सोयाबीन से पानी निकाल दीजिये, सोयाबीन को प्याले में डालिये, ढककर 2 मिनिट के लिये माइक्रोवेव में रख दीजिये. दूसरा तरीका उबलते पानी में डालिये और ढककर 5 मिनिट के लिये रख दीजिये, इस तरह से सोयाबीन्स की महक कम हो जायेगी और सोयाबीन के छिलके उतारने में आसानी रहेगी.
सोयाबीन के गरम किये गये दानों को हाथ से मलिये और छिलके अलग कर दीजिये, अब सोयाबीन को पानी में डालिये और छिलके तैरा कर हाथ से निकाल दीजिये.
आप चाहे तो सोयाबीन के छिलके सहित ही दूध बना सकते हैं लेकिन बिना छिलके के सोयाबीन का दूध अधिक स्वादिष्ट होता है और इसका पल्प (Okara) भी अधिक अच्छा निकलता है.
छिलके रहित सोयाबीन को मिक्सर में डालिये, पानी डाल कर एकदम बारीक पीस लीजिये. पिसे मिश्रण में 1 लीटर पानी डालिये और मिक्सर चला कर अच्छी तरह मिक्स कर दीजिये.
दूध को गरम करने के लिये आग पर रख दीजिये, दूध के ऊपर जो झाग दिखाई दे रहे हैं उनको चमचे से निकाल कर हटा दीजिये. दूध उबालते समय थोड़ी थोड़ी देर में चमचे से चलाते रहिये. दूध में उबाल आने के बाद 5-10 मिनिट तक सोयाबीन दूध को उबलने दीजिये. आग बन्द कर दीजिये.
अब इस उबले हुये दूध को को साफ कपड़े में डालकर अच्छी तरह छान लीजिये. छानने के बाद जो ठोस पदार्थ सोयाबीन पल्प (Okara) कपड़े में रह गया है उसे किसी अलग प्याले में रख लीजिये,
सोयाबीन का दूध तैयार है. दूध को ठंडा होने दीजिये. सोयाबीन के दूध को आप अब पीने के काम में ला सकते हैं, सोयाबीन का दूध फ्रिज में रखकर 3 दिन तक काम में लाया जा सकता है.
How to Use Soybean Milk
आप सोया मिल्क को सामान्य मिल्क की तरह से पी सकते हैं या फलों के साथ इसका शेक या स्मूदी भी बना सकते हैं. सोयाबीन के दूध को फाड़ कर बने सोया पनीर (Tofu Paneer) से बनी सब्जी भी बना सकते हैं.

सोया दूध बनाने से निकली हुई सोयाबीन पल्प (Okara) को आटे में मिलाकर बनी मिस्सी रोटी. सोयाबीन पल्प (Okara) में आलू और ब्रेड के टुकड़े मिलाकर सोयाबीन कटलेट बनाकर भी खाये जा सकते हैं.
पोषण और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी
सामान्य सोया दूध
|
लाइट सोया दूध(कम वसा)
|
गाय का सम्पूर्ण दूध
|
वसा रहित गाय का दूध
| |
कैलोरी (ग्राम)
|
140
|
100
|
149
|
83
|
प्रोटीन (ग्राम)
|
10.0
|
4.0
|
7.7
|
8.3
|
वसा (ग्राम)
|
4.0
|
2.0
|
8.0
|
0.2
|
कार्बोहाइड्रेट (ग्राम)
|
14.0
|
16.0
|
11.7
|
12.2
|
लैक्टोज (ग्राम)
|
0.0
|
0.0
|
11.0
|
12.5
|
सोडियम (मिलीग्राम)
|
120
|
100
|
105
|
103
|
आयरन (मिलीग्राम)
|
1.8
|
0.6
|
0.07
|
0.07
|
रिबोफ्लाविन (मिलीग्राम)
|
0.1
|
11.0
|
0.412
|
0.446
|
कैल्शियम (मिलीग्राम)
|
80.0
|
80.0
|
276
|
299
|
सोया के लाभ अभी भी विवादित हैं, हालांकि यह आम तौर पर स्वीकार कर लिया है कि सोया दूध में बहुत स्वस्थ घटकों की उच्च संख्या है. सोया दूध प्रोटीन में उच्च है. क्योंकि यह बीन्स से बनाया है, यह भी गाय के दूध की तुलना में काफी अधिक फाइबर शामिल हैं व बीन्स से बनाया जाता है. बीन्स साफ करे और रात भर भिगोये और शुदय करे. ठोस छान ले और जिसके परिणामस्वरूप तरल 10 मिनट के लिए उबाले.
सोया दूध भी सबसे प्रमुख सुपरमार्केट में इन दिनों बेचा जाता है. बाजार में घर सोया दूध बनाने के लिए रसोई उपकरण मौजूद है. सोया दूध के स्वस्थ पहलुओं प्रोटीन और फाइबर के अलावा सोया दूध में सबसे बड़ा लाभ isoflavones का हैं जो की कई तरह के कैंसर, हृदय रोग, ऑस्टियोपोरोसिस और अधिक की रोकथाममें उपयोगी हैं.सोया दूध वसा से मुक्त नहीं है. लेकिन इसमें कोलेस्ट्रॉल नहीं है.
सोया दूध के लाभ-
सोया दूध एक गैर डेयरी दूध के फार्म का है. सोया दूध परंपरागत रूप से पश्चिमी देशों से प्रचलित है जहा लोगों को गायों के दूध से एलर्जी है. लेकिन इसके संबद्ध स्वास्थ्य लाभ की वजह से पश्चिमी दुनिया famous है. सोया सेम फाइबर का एक बड़ा स्रोत भी हैं. तो सोया दूध स्वास्थ्य लाभ में अच्छा है जो अधिक फाइबर युक्त होनेसे सामान्य पाचन कार्यों में मदद करता है.सोया दूध में वसा होता है, लेकिन वसा अच्छे प्रकार का होता हैं और यह कोलेस्ट्रॉल मुक्त है जिससे धमनियों और हृदय रोग को रोकने में मदद होती है.सोया दूध लैक्टोज मुक्त भी है.यदि आपको गायों के दूध से एलर्जी है तो सोया दूध एक अच्छा विकल्प हो सकता है. 2.5% बच्चों को गाय के दूध से एलर्जी है, जबकि केवल 0.5 प्रतिशत बच्चों को सोया दूध से एलर्जी है.
सोया दूध के अन्य प्रमुख विशेषताएं यह है कि इसमें isoflavones शामिल हैं जो हृदय रोग, कुछ तरह के कैंसर और ऑस्टियोपोरोसिस की रोकथाम सहित स्वास्थ्य लाभ में मदतगार हैं. Isoflavones antioxidants है जो radicles और ऑक्सीकरण के खिलाफ हमारी कोशिकाओं की रक्षा में मदद करता हैं. Isoflavones गाय के दूध में मौजूद नहीं हैं.
सोया दूध भी लेसितिण , विटामिन बी और विटामिन ई का एक अच्छा स्रोत है. विटामिन ई स्वस्थ त्वचा को बनाए रखने में मददगार है.
सोया दूध की कमी-
हालांकि सोया दूध के गाय के दूध पर कुछ लाभ है. पर यह भी महत्वपूर्ण है कि इसमें गाय के दूध के तुलना में कुछ कमिया है . सोया दूध का सबसे बड़ी कमी कैल्शियम की कमी है. सोया दूध में कैल्शियम की मात्र गाय के दूध की तुलना में एक तिहाही ही है. कई सोया दूध निर्माता अपने उत्पादों के लिए कैल्शियम अलग से डालते हैं, लेकिन अध्ययन बताते हैं कि यह स्वाभाविक रूप से ठीक नहीं है. सोया दूध ओमेगा -3 फैटी एसिड EPA है या DHA प्रदान नहीं करता है.
घटना वैसी काफी पुराणी है , परंतु बहुत दिलचस्प है. रेसमें दौड़ने वाले घोडे के एक तबेलेका मालक एकबार काफी चिंतित हुआ. रेसमें हरदम आगे रहके रेस जितके देनेवाले उसके घोडे अचानक पिछड़ने लगे . रेस जितना तो दूर परन्तु , रेसमें टिकना भी उन घोडोंको मुस्किल था. आखिर क्या प्रॉब्लम है यह उसे समज नहीं रहा था. घोडे वही थे , उनकी देखरेख भी पहले जैसी हो रही थी. उनका खाना-पीना भी सुव्यवस्थित था. उस मालकने आखिर तज्ज्ञ को नियुक्त किया. उन्हे भी सटीक कारन हाथ लगा नहीं. हताश होके निकलते समय उनको एक गोठा दिखा. उन्होंने उस तबेलेके मालीकको पूछा, तब उसने कहा की, इसमें भैस है. इन भैसका दूध हम घोडोंको पुरक आहार हेतु देते है. पूर्व में हमारे पास गाये थी, परंतु उनका दूध कम पड़ने हमने उनको बेचकर भैसे लायी. उसपर उनमेसे एक तज्ज्ञमेसे एकजण तत्काल बोला की , 'आपने गाय नही, आपका भाग्य बिका है ; आपके घोडोंकी क्षमतामे, ताकद में जो अंतर गिरा वह इस भैसके दुधके कारन .' गाईका दूध भैसके तुलनामे अधिक पौष्टिक,सकस होनेका सत्य इससे दिखाई देता है.
वैदिक कालसे गोधन यही अपने समृध्दीका प्रतिक समझा जाता था. (बाकि सब प्रतिकोंके साथ यह प्रतीक भी आजके कल में आउट डेटेड हुआ है) गायको माता कहा जाता था . उसे देवत्व बहाल किया गया था वहा केवल धार्मिक अंधश्रध्दआसे नहीं बल्कि उसके पीछे शास्त्रशुध्द कारणमीमांसा थी.पाचकता, सकसता आणि पौष्टिकता का विचार किये जानेपर गायके और माताके दुधसे भरपूर साधर्म्य दिखता है और सिर्फ दूधही नहीं बल्कि गोमूत्र, गोमय यानि गोबर भी मानवके लिए उतनाही उपयुक्त है . सात्वीक आहार समझे जाने वाले गाय के दुधमें करीब-करीब सभी अन्नघटक योग्य प्रमानमे समाविष्ट होते है और इसीलिए दुधको पूर्ण अन्न कहा गया है , मतलब गायके दुधको. अपने देशके भूतकालपर नजर डालनेसे हमें दिखेंगा की उस कालके लोकं केवल शारीरिकदृष्ट्याही नहीं बल्कि बौध्दिक दृष्ट्याभी आजके पिढीसे काफी अधिक सशक्त, प्रगत थे .
वेद, ऊपनिषद सरिखे श्रेष्ठ ज्ञान, रामायण-महाभारत जैसे अजरामर ग्रन्थ देनेवाले लोग किसीभी दृस्तिसे आजके पिधिओन्से श्रेष्ठ है. इस श्रेष्ठताको कारणीभूत होती थी उनकी जीवनशैली, उनका आहार. उस कालमे भारतमें भरपूर गोधन था . गाय का दुध, उससे बना दही, लोणी, घी इनका आहारामें प्रामुख्य से समावेश होता था. इस प्रकारके सात्विक आहरसे उनका शरीरं पुष्ट आणि बुध्दी तरल होती थी. गायके गोबरसे लिपे कुटिरमें प्रवेश करनेकी रोगजंतूमें हिंमत नहीं थी . पुरातन कालमे युद्धमें होनेवाले घावमे गायका जुना घी भरा जाता था , जुने किल्ल्या पर जानेसे वह घी की टाकी 'गाईड' आवर्जून दिखाते है .
बैल का खेतिके लिए तो उपयोग होता था और उसके गोबर का खाद जैसा उपयोग करनेसे जमिन और भी कसदार होती थी. गोवंश के गोबर खाद का वापर करनेसे खेतमे केचुओं का प्रमाण बढ़ता है और बड़े प्रमाण में केचुआ से सम्पन्न जमीन ही जिन्दा समझी जाती है , यह एक सिध्द शास्त्रीय विधान है . एक तरहसे गोधन को जब तक अपने देश मे, अपनी व्यवस्था में महत्त्व का स्थान था तब तक यह देश सब दृस्थिसे सुदृढ था . पचास -पचास किलोकी तलवार दोनों हात में और पिठ्को 80 किलोका भाला लेके लढने वाले महाराणा प्रताप आज हमें दंतकथा के नायक लग रहे हो तो भी एक जिन्दा वस्तूस्थिती थी.
आज परिस्थिती ऐसी है की, दुनिया के पुरे भैस में 98 टकका भैसे भारतीय ऊपखंड में दिखाई देते है, गाय के बारे में यही प्रमाण केवल 15 टकका है . आजकल सोने का पर्याय में बेन्टेक्स का वापर बड़े प्रमाण में बढ़ा है. केवल उपरकी कृत्रिम चमक छोडके बेन्टेक्स में सोनेका एक भी गुणधर्म नहीं है. दुध के बारे में भी ऐसाही कह सकते है. एक रंग का साधर्म्य छोडके गाय के दुध के तुलना में भैसका दूध किसी भी योग्यता का नहीं है. लोगोने शुरवात में पर्याय में अपनाया भैसका दूध बादमे आहार का नियमित घटक बना . भैसका घट्ट दूध, उसपर आनेवाला मलाइकी जाड़ी पपड़ी , उससे का भरपूर लोणी इस उपरके दिखावेसे हम प्रभावित हुए. प्रत्यक्ष में भैसके दुध ने 'स्लो पॉयझन' का कार्य किया है. चर्बी के प्रमाण से भरपूर भैस के दुध ने अपने शारीरिक क्षमता पर परिणाम किया है . बुध्दी जड, संवेदनाहिन हो रही है , तरलता रही नहीं और और शरीर का हाल कूछ अलग नहीं. इतिहास के महाराणा प्रताप, बाजीप्रभू, तानाजी समान योध्हा यह हमारा भूतकाल हो गया है और अब वर्तमान कालमे पुरुष की सरासरी उचाई सव्वापाच फुट व वजन 50 किग्रा. पर आया है. महिला के बारे में भी सेम स्थिति है . अभी के पिढी में महिला ये अपनि प्रसव क्षमता खो बैठे है.
उसके पीछे अनेक कारण भी होंगे परंतु सकस आहार का दुर्भीक्ष यह एक प्रमुख कारण है और गायका शुध्द, सात्वीक दूध यही सकस आहार का मुख्य प्रमाण आहे.
भैस यह एक मठ्ठ, मंद आणि सुस्त प्राणी है . तो भैस के दुध से दुसरा क्या आयेंगा? यही गुण उसके दुध में उतरते है . भैस का प्रजजन होने के बाद उसका बछड़ा खड़े रहने के लिए दो दिन लेता है. गाय का बछड़ा मात्र घंटे भर में खड़ा होकर खेलने लगता है. एक प्रयोग करके हमें पता चल सकता है. भैस के दस बछड़े और गायके दस बछड़े दिन भर अलग-अलग बांध के रखे.श्याम को उनको छोड़ने के बाद हमें यह दिखाई देंगा की , गायका बछड़ा जल्दी अपने माँ को धुंड निकालता है.
हमारी प्राचीन,दैवी,रिशिओंकी देसी प्रजाति संकरित हो रही है. उससे हमारे भविष्य को खतरा है. किसान बन्धुओने गायका सिर्फ दुध के लिए विचार न करते हुए गोमय,गोमुत्र आदी के लिए व्यावसायिक दृष्टिकोण से विचार कारन चाहिए. बछड़ो के पिने के बाद बाकि दूध ले. इंजेक्शन उपयोग करके असमय दूध न निकाले. पान्हा फूटने के बाद अपने आप आनेवाला दुध ही अमृत समान होता है. भगवान श्रीकृष्ण, दत्तात्रय आदि के फोटोमें गाय आजूबाजू दिखती है.परन्तु यमराज का वाहन मात्र म्हैस, रेडा दिखाया जाता है. इससे यही बोध ले सकते है की , गाय पालन करोंगे, गाय का दूध, लोणी सेवन करोंगे तो महान, पूजनीय बनोंगे. और भैसका दूध पियोंगे तो मात्र यमराज के साथ जाओंगे. गोवंश बचेंगा तो यह देश बचेंगा,तरंगा,फुलेंगा यह एक अपरिहार्य सत्य है.
स्वच्छ दूध महत्वका
देरी में दूध कितना भी अच्छा रखा तो भी दूध dairy में आनेसे पहले अस्वच्छ व ख़राब होने की संभावना रहती है.इसलिए किसानोको गायके दूध की स्वछता पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए.स्वच्छ दूध उत्पादनसे ग्राहक को अच्छा दूध मिलाता है,साथ में उत्पादक को भी अच्छा आर्थिक लाभ मिलता है.
दूध उत्पादक की जवाबदारी
दूध में किसी भी प्रकार की मिलावट करना नहीं चाहिए. बीमार जानवरों का दूध डेरी में नहीं देना चाहिए. धार निकालते समय शुरू में कुछ धारे छोड़ दे. डेलिवरी वाली गाय का दूध करीब-करीब ५ दिन न दे. दूध निकालने बाद जल्दी से जल्दी दूध डेरी में पहुचाये.दूध वितरण के बाद बर्तन अत्यंत सावधानीसे साफ व निर्जन्तुक करे. बासा, कोवला, व स्तन दाह हुए गायो का दूध डेरी में भेजना नहीं चाहिए.
दूध उत्पादक स्तर पर स्वछता
बीमार दुहती गायो का व स्तन दाह हुए गायो का दूध बाकि अच्छे दूध में न मिलाये. गाय की गोशाला स्वच्छ व सुखी रखे. धार निकालने से पहले अपने हाथ स्वच्छ धोये. दूध के बर्तन अच्छे धोये. क्योंकि सुरुवात के दूध में जंतु ज्यादा होते है. दूध डेरी में लेट समय स्वच्छ कैन में लाये, उस कितली का ढक्कन व्यवस्थित बंद करे. डेरी को पुराने दूध का वितरण न करे.
संस्था लेवल पर दूध की स्वछता
दूध संकलन खुले जगह पर न हो. कैन में दूध भरने के बाद गाड़ी आने तक कैन का ढक्कन खुला न छोड़े. वह बंद करना अति आवश्यक है. दूध संकलन के सिवाय दूध के कैन बाकि कार्यो के लिए इस्तेमाल करनेसे दूध की प्रत कम होती है.
दूध संकलन की जगह अस्वच्छ होनेसे,फर्श गन्दा होनेसे ,छत को जाले लगनेसे संकलित किया हुआ दूध भी अस्वच्छ होनेकी संभावना होती है.इसलिए संकलन के समय परिसर में चीजे स्वच्छ होना चाहिए. छाननी व ट्रे साफ होना चाहिए.उन्होंने दूध के कैन में व दूध में बार बार हाथ नहीं डालने चाहिए. खासना व छिकना सावधानीसे करे. मक्खिया न रहे इसकी सावधानी रखे. कैन गंदे पानीसे नहीं धोना चाहिए. संस्थान ने जल्दी व समय पर दूध संकलन करके दूध प्रकल्प को भेजना चाहिए,इससे दूध ख़राब नहीं होंगा
दुधशाला स्तरपर स्वच्छता
कैन स्वच्छ व निर्जन्तुक करके संकलन के लिए भेजे. दुधशाला में संकलन के लिए गाडिया आनेपर दूध स्वीकृति की अच्छी यंत्रणा होना अत्यावश्यक है. दुधशाला की स्वछता एकदम अच्छी होना चाहिए, व निर्जन्तुकीकरण योजना अत्याधुनिक होना चाहिए. दुधशाला के कर्मचारियोका दूध से संपर्क न हो.वे मुह्पर कपड़ा व हातमोजे पहने व स्वच्छ रखे.
दूध का स्निग्धांश ऐसा बढ़ाये
दूध की प्रत दूध के स्निग्धांश पर व स्निग्धांश रहित घन पदार्थ पर रखी जाती है. व्यवस्थापन में होने वाले गलतिया टालनेसे स्निग्धांश नियोजित स्तर पर लाया जा सकता है . काफी दूध उत्पादक दूध का स्निग्धांश व SNF बढ़ाने के लिए आरोग्य को घातक पदार्थ मिलाते है. यह मिलावट जानलेवा होती है. इसलिए निम्मलिखित उपाय करना चाहिए. दो धारका अंतर समान रखे. जहा दिनमे दो बार दूध निकला जाता है , वहा दो धार का अंतर 12 घंटे होना चाहिए. जिन गायोसे दूध ज्यादा मिलता है, उनसे ३ बार दूध आठ घंटे के अंतराल से निकाले. गाय का दूध जल्दी-जल्दी निकलाने से उसके कास से पूरा दूध निकलता नहीं व इससे दूध का स्निग्धांश कम होता है. इसलिए गया का दूध पूर्ण निकाले व दूध निकालने की प्रक्रिया ५-७ मिनट में पूरी करे.जहा बछड़ा दूध पिता हो वहा उसे दूध पहले पिलाये. बचा दूध बर्तन में ले वा उसके वजन का १० % दूध ऊपर से पिलाये.

तदेव गुणमेवौजं सामान्यात् अभिवर्धयेत् ।प्रवरं जीवनीयानां क्षीरमुक्तं रसायनम् ।।...चरक सूत्रस्थान
रंग--गाय का दूध सफेद रंग का होता है.
गुण--मृदू, स्निग्ध, चिकना
स्वाद--गाय का दूध मीठा होता है ,प्रसन्नता देता है.
स्वरूप--गाय का दूध बहुत ही प्रसिद्ध है.
स्वभाव--गाय के दूध की प्रकृति ठण्डी होती है.
हानिकारक--गाय का दूध शरीर में बलगम को अधिक बढ़ाता है.
दोषों को दूर करने वाला--गुलकन्द गाय के दूध के दोषों को खत्म कर देता है.
तुलना--बकरी के दूध से गाय के दूध की तुलना की जा सकती है.
मात्रा--250 ग्राम.
गुण--गाय का दूध जल्दी हजम होता है. खून और वीर्य को बढ़ाता है. वीर्य की पुष्टि भी करता है. यह शरीर, दिल और दिमाग को मजबूत व शक्तिशाली बनाता है. यह मैथुन शक्ति (संभोग शक्ति) को बढ़ाता है. पुराना बुखार, यक्ष्मा (टी.बी.) रोग की कमजोरी को मिटाने के लिए गाय का ताजा दूध अमृत के समान होता है.
* आहारद्रव्य करके गाईका दूध उत्तम रहता है , पर मेडिसिन में गाईका दूध बड़े प्रमाणापर इस्तेमाल किया जाता है. औषधी तेल वा तूप बनाते समय गायके दुधके भावना दी जाती है . अनेक द्रव्यकी शुद्धी करने के लियें गाय का दूध इस्तेमाल किया जाता है. गाय का दूध दिमाग व हृदय के लिए उत्तम होता है . * पेशाबमे आग अगर हो तो,अटक-अटक के हो तो या पेशाब मे होते हुए दर्द होनेपर एक कप गायका दूध दो चमचा गूळ डालके पीनेसे आराम होता है . * पित्त बढ़ने पर पेट में दर्द हो तो वा आग जैसा लगे तो सामान्य तापमानाका गायका दूध खडीसाखर के साथ घुट घुट लेनेसे अच्छा लगता है.
Constituents
|
Unit
| ||||
Water
|
g
|
87.8
|
88.9
|
83.0
|
81.1
|
Protein
|
g
|
3.2
|
3.1
|
5.4
|
4.5
|
Fat
|
g
|
3.9
|
3.5
|
6.0
|
8.0
|
Carbohydrate
|
g
|
4.8
|
4.4
|
5.1
|
4.9
|
Energy
|
kcal
|
66
|
60
|
95
|
110
|
Energy
|
kJ
|
275
|
253
|
396
|
463
|
Sugars (lactose)
|
g
|
4.8
|
4.4
|
5.1
|
4.9
|
Cholesterol
|
mg
|
14
|
10
|
11
|
8
|
Calcium
|
mg
|
120
|
100
|
170
|
195
|
Saturated fatty acids
|
g
|
2.4
|
2.3
|
3.8
|
4.2
|
Monounsaturated fatty acids
|
g
|
1.1
|
0.8
|
1.5
|
1.7
|
Polyunsaturated fatty acids
|
g
|
0.1
|
0.1
|
0.3
|
0.2
|
भारत यह कृषीप्रधान देश है , भारतकी ७० टक्का जनता ग्राम में रहती है. ग्राम के आदमीको रोजगार मिलता है वह खेती वा खेतीपूरक व्यवसाय से . यह खेती सर्वार्थ से आधारित रहती है वह गोधन पर. इस गोधन से मिलनेवाला दूध, गोमूत्र, गोबर , मरनेके बाद चमडा इन सबका उपयोग बड़े मात्रा पर होता है. चमड़े के निर्यात का गणित रखा तो प्रतिवर्ष ६,५०० कोटी रुपए की उलाढाल होती है. एक गाय जो गोबर देती है , उससे सालमे ४,५०० लिटर बायोगॅस मिलता है. पुरे देशके सब गायके गोबरका उपयोग बायोगॅसके लिए किया तो इंधन के लिए इस्तेमाल किये जानेवाले ६ कोटी ८० लाख टन लकड़ी की बचत हो सकती है. इससे हर साल १४ कोटी पेड़ बच सकते है. गोमूत्र पर जारी संशोधन और उसके वैद्यकीय उपयोगिता पर मिले दो पेटंटस तो जग में उत्कंतथा विषय बने है. नागपूर का गो विज्ञान अनुसंधान केंद्र इस दृष्टी पर आगे है . गोमूत्र में अॅषटीबायोटिक, अॅंाटीफंगल, अॅंाटीकॅन्सर मूल्य है यह इस पेटंटसे साबित हुआ है. फिलहाल भारत मे ८० प्रकार के गौए प्रजातीं में से सिर्फ ३२ प्रजाती शेष है,यह चिंता का विषय है.
|
बादाम का दूध
ठंडा बादाम केशर दूध
बादाम सेहत और दिमाग दोनों के लिये बहुत अच्छे होते ही हैं. गर्मी के दिनों में बच्चों को सुबह सबेरे ठंडा बादाम केशर दूध बेहद पसंद आयेगा.
आवश्यक सामग्री -
• दूध - 400 ग्राम (2 कप)
• बादाम - 20
• केशर - 15-20 धागे
• छोटी इलाइची - 4
• चीनी - 3-4 छोटे चम्मच
• बर्फ के क्यूब्स - एक कप
विधि -
बादाम को धोइये और 2 घंटे के लिये गुनगुने पानी में भिगो दीजिये.पानी से बादाम निकालिये और छील लीजिये, छिले हुये बादाम, चीनी, केसर और इलाइची छील कर एक साथ मिलाकर बारीक पीस लीजिये, मिश्रण को ठंडे दूध में मिलाइये, दूध को छान लीजिये और अधिक ठंडा करने के लिये बर्फ के क्यूब्स डालिये.
बादाम का ठंडा दूध गर्मी के मौसम में पीने के लिये तैयार है, इस ठंडे बादाम के दूध को गिलास में डालिये, ऊपर से बादाम और पिस्ते को कतर कर डालिये और ठंडा ठंडा केशर बादाम मिल्क (Kesar Badam Milk) परोसिये
केशर बादाम गर्म दूध -
जब गर्मी न हो या रात को बादाम केशर का ठंडे दूध की जगह केशर बादाम का गर्म दूध अधिक पसंद आता है.
आवश्यक सामग्री -
• दूध - 400 ग्राम (2 कप)
• बादाम - 10-12
• केशर - 15-20 धागे
• काजू - 5-6
• छोटी इलाइची- 2
• चीनी - 2-4 छोटी चम्मच
विधि -
बादाम और काजू को 7-8 टुकड़े करते हुये काट लीजिये. इलाइची को छील कर पीस लीजिये.
दूध को भारी तले के बर्तन में डाल कर गरम कीजिये, दूध में उबाल आने के बाद बादाम, काजू और केसर के टुकड़े डाल दीजिये, धीमी गैस पर 4-5 मिनिट तक उबालिये, गैस फ्लेम बन्द कर दीजिये.
दुध में चीनी और इलाइची पाउडर डाल कर मिलाइये. बादाम का गरमा गरम दूध तैयार है. सर्दी के दिनों में बादाम का गरमा गरम दूध पीजिये और गरमाहट महसूस कीजिये.
चार सदस्यों के लिये
समय - 25 मिनिट
मिलावटी दूध का गोरख-धंधा
हम दूध तो सेहत बनाने के लिए पिटे है. मरीज तबियत सुधारने के लिए पिता है. पर इन मिलावट वालो ने पुरे लोगो की कंबर तोड़ी है, इंसानियत के नाम पर गन्दा मजाक किया है.
आजकल मिलावटी दूध तैयार करने के लिये दूध में काबरेलक्सिंग अॅसीड, अॅलीफॅटीक पॉलीमर, पॅरोफीन, कॉस्टीक सोडा, सोफ डिर्टजट, युरिया, सोडियम लॉरेल सल्फेट मिलाया जा रहा है. हम लोग सब कुछ जानते हुये भी इस तरह के दूध का इस्तेमाल करने से ज़रा भी गुरेज़ नहीं करते. क्योंकि हमारे पास कोई विकल्प नहीं है .लेकिन इस का मतलब यह भी तो नहीं कि हम लोग ऐसे दुध का इस्तेमाल करने लगें जो केवल सेहत बिगाड़ने का ही काम करता हो.मिलावटी दूध के कारन आज लोग दूध से बनी कोई भी चीज़ बाहर खाने से डरते है. जो अपने काम पर बार बार चाय पीने के शौकीन हैं उन्हें आखिर ऐसे दूधकी चाय पीनी पड़ती है.
हम लोग 100 करोड़ से भी ऊपर हैं तो भी हमारे डेयरी विशेषज्ञ व सरकार दूध की शुद्धता के बारे में अपना मुंह क्यों नहीं खोलते. सोचने की बात है कि हम लोगों ने इतनी तरक्की हर क्षेत्र में कर ली है लेकिन हम लोगों को दो-चार साधारण टैस्ट घर में ही करने क्यों नहीं सिखा पाये जिस से कि वे पूरे विश्वास से अपने दूधवाले से कह सकें कि कल से यह गोरख-धंधा बंद करो --- बहुत हो गया.
अगर कोई ग्राहक दूध वाले से यह सब कहेगा कि दूध की महक ठीक नहीं लगती, दूध पिछले कुछ दिनों से कुछ ज़्यादा ही पीला सा लग रहा है, दही सही नहीं जम रही और पिछले हफ्ते में दो बार दूध फट गया ----- तो ग्राहक की ही खिल्ली उड़ाई जाती है क्योंकि हर बात का उस शातिर दूध वाले के पास रैडी-मेड जवाब पहले ही से तैयार होता है.
ऐसे में ज़रूरत है किसी वैज्ञानिक टैस्ट की जो कि लोग घर पर ही दूध में कुछ मिला कर थोड़ा जांच कर के देख लें कि कहीं वे दूध के भेष में काबरेलक्सिंग अॅसीड, अॅलीफॅटीक पॉलीमर, पॅरोफीन, कॉस्टीक सोडा, सोफ डिर्टजट, युरिया, सोडियम लॉरेल सल्फेट तो नहीं पीये जा रहे ,
इस रसायनसे अॅलर्जी, श्वसनक्रियका विकार, अस्थमा, वंध्यत्व, नपुसकत्व, कीडनी व लिव्हरका रोग , कर्करोग आदी प्रकार के रोग होते है, ऐसा निष्कर्ष में आया है . छोटे बच्चोंके चयापचय क्रिया पर विशेष परिणाम होता है. नैसर्गिक दुधाका लायसीन प्रोटीन यह घटक रसायनसे नष्ट होता है. इसकारण मिलावट पाच ते दहा टकका हो रही हो तो भी सब दुध का पोषकमूल्य नष्ट करती है.
बेहतरी होती कि ये डेयरी विशेषज्ञ कुछ इस तरह के टैस्टों के बारे में लोगों को बताते जिस से कि लोग अपने आप ये टैस्ट कर सकें और मिलावटी दूध को तुरंत बॉय-बॉय कह सकते .
बहरहाल, मिलावटी दूध से बच कर रहने में ही समझदारी है हम सब यही सोचते हैं कि यह समस्या कम से कम हमारे दूध वाले के साथ तो नहीं है ------यह तो किसी दूसरे शहर की, दूसरे लोगों की समस्या है ----अगर हम भी ऐसा ही सोचते हैं तो शायद हम कुछ ज़्यादा ही खुशफहमी का शिकार हैं.
मिलावटी दूध का कारण
मिलावटी दूध का कारण यह है की ऐसे लोगो मे पैसा पाने के लिए नैतिकता मर गई है.इसकारण यह लोग किसी भी हद तक जा सकते है. या तो कठोर कानून की कमी है,या जो कानून है उसका अंमल इन मिलावटी लोगों के खिलाफ नहीं होता.
ऐसा बनता है रासायनिक दूध!
फॉम्र्युला १ - खाली पानीके बोतल में रंगविरहित दो प्रकारके दो लिटर रसायन करीब-करीब ११०० रू को मिलता है . वह घोलके पाणी मिलाया तो एक हजार लिटर यानि स्थानिक बाजारपेथमे ११ हजार व महानगरमें २० हजार का दूध तयार होता है . एक रसायन को जय विरू, तो दूसरेको जय हिरा कहते है . उसमे ग्लुकोज पावडर, दूध पावडर मिलाने पर दूध तयार होता है .
फॉम्र्युला २ - कॉस्टिक सोडा, शिलाई मशिन के लिए इस्तेमाल किया लुप ऑईल, सोप डिर्टजट व कारवॉशचा वापर करके दूध बनाया जाता है.
फॉम्र्युला ३ - सोयाबीन तेल, केमिकल्स पावडर व नैसर्गिक दुध का मिश्रण बने जाता है . अनेक बार सफ़ेद ग्रीस का भी उसमे वापर किया जाता है. संकलक के पास जमा होने वाले दुध में ४० टक्का मिश्रण मिलाके दूध प्रकल्प में जाता है. वहा दोबारा प्रक्रिया होती है . १२ हजार लिटर के टँकरमें ८ हजार लिटर नैसर्गिक दूध व ४ हजार लिटर पाणी इस्तेमाल करके उसमे रासायनिक वा दूध पावडर डाला जाता है . पाउच से वह महानगर में खासगी प्रकल्प के अंतर्गत पोहोचती है.
शुद्ध दूध का उपाय
हम सहकारी तत्त्व पर कुछ लोगो का गट बनाकर गोशाला चलाये यही एक सही उपाय है. इसमें हम गोशाला चलाकर उसका सही प्रबंधन करके अपनी सेवा दे. कुछ सेवककों का गठन अवश्य करे वा उनपे निगरानी रखे. जो दूध मिले उसे सोसाइटी में बाटकर बाद मे बाहर भेजे वा बेचे. इससे हमें शुद्ध व् पौष्टिक दूध मिलेंगा.
मूंगफली का उत्पादन
ReplyDelete