पतंजलि(दिव्य योग-दिव्य लाइफ) आदर्श ग्राम व ग्रामोद्योग, देश को समर्पित


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Thursday, 19 January 2012

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दुनिया के सहकार आन्दोलन की शुरुवात
     सहकारी आन्दोलन का उदय १८४४ साल में इंग्लंड में हुई. यह चळवळ औद्योगिक क्रांती से निर्माण हुए समस्यांवर उपाय करके निर्माण हुई थी. भांडवलदार उद्योगपती वर्ग से कामगार वर्ग का शोषण रोखने के लिए कामगारों को एकत्र्रित रॉशडेल पायोनिअर इन्होंने पहली सहकारी ग्राहक संस्था स्थापन क़ी. इस संस्था के सभी सभासदोंसे भाग भांडवल जमा करके उनके लिए कुछ दैनंदिन उपभोग का माल खरेदी करके वह खुद ही कामगारों को बेचा (भागधारक, सभासदोंको ). इससे होने वाला नफा यह पुनह: सभासदों को सेवा देनेके लिए प्रयोग करे. इससे सहकार आन्दोलन क़ी शुरुवात हुयी ऐसा दिखाई देता है. इसलिए रॉशडेल पायोनियर इनको सहकारी आन्दोलन का जनक कहा जाता है. रॉशडेल पायोनियर इनका यश देख में के बाद पहले इंग्लंड में और बादमे मुखत: जर्मनी, डेन्मार्क, नॉर्वे, स्वीडन यहाँ सहकार संस्थां क़ी निर्मिती हुई. उसके बाद वह दुनिया में फैल गई.
भारत के सहकार क़ी पार्श्वभूमी
     महाराष्ट्र में १८७६-७८ इन दो वर्ष में प्रचंड अकाल गिरा. उसको परेशान होकर मुंबई यहाँ अनेक किसानो ने एकत्रित आके मराठा लँड लीग क़ी स्थापना क़ी. इनके माध्यम से सावकारों पर बहिष्कार डाला गया. सावकारों के दुकान जलाना. कर्ज के कागदपत्र नष्ट करना आदी प्रकारसे शेतकरि ओने असंतोष व्यक्त किया. उसपर ब्रिटिश शासनने एक चौकशी आयोग बनाया. आयोग के सीफारशी से लॉर्ड कर्झन ने शेतकरिओं को कर्जमुक्त करने के लिए मार्च १९०४ को सहकार पतसंस्था कायदा मंजूर किया गया. इस कायदे से स्वातंत्र्यपूर्व कालमे महाराष्ट् के साथ संपूर्ण भारत में सहकार आन्दोलन क़ी सुरुवात हुई करके दिखाई देता है.
             मात्र इसके पहले भारत में अयशस्वी सहकार आन्दोलन का प्रयत्न न्या. महादेव गोविंद रानडे सर विल्यम वेडरबर्न इन्हों में किया था. पुरंदर तालुके के शेतकरीओं को कर्ज देने के लिए सहकार बैंक क़ी स्थापना करनेका प्रयत्न किया गया था.
            आगे शेती के विघटन से छोटे/अल्प-भूधारण आदि समस्या निर्माण होने लगे. उसको पर्याय यानि सहकारी शेती के साथ सहकार उद्योगों क़ी कल्पना श्री डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इन्होने रखी थी. सहकार लोकराज्य भारत में निर्माण होना चाहिए ऐसा विचार रखने वाले मानवेंद्रनाथ रॉय, वैकुंठभाई मेहता और धनंजयराव गाडगीळ का उल्लेख करना पड़ेंगा.
सहकार शक्कर कारखाने
     महाराष्ट्र के सहकार साखर कारखानो क़ी तरफ सहकार क्षेत्र का विशेष करके देखा जाता है. आज महाराष्ट्र में २०२ साखर कारखाने है व उनमेसे १३६ अच्छे उत्पादन स्थिती में है. इनमे से १२० सहकार साखर कारखाने और १६ खाजगी साखर कारखाने है. सबसे ज्यादा साखर उत्पादन से महाराष्ट्र को भारत का शर्करा कुंभ करके पहचाना जाता है. इन सहकार साखर कारखानो से अब्जो रुपयों क़ी उलाढाल होती है. ३१ ऑगस्ट १९९८ को साखर उद्योग परवाना मुक्त हुआ. उसके बाद खाजगी क्षेत्र का पहला साखर कारखाना रांजणी (ता. कळंब, जि. उस्मानाबाद) यहाँ शुरू हुआ.
     ग्रामीण विकास को सहकार साखर उद्योग से जनकल्याणकारी मार्ग से जोडा गया है. साखर उद्योग से शैक्षणिक संस्था, यानि बौद्धिक विकास के साथ व्यवसाय आधारित तांत्रिक प्रशिक्षण संस्था, वैद्यकीय महाविद्यालय, स्थानिक बँक, दूध डेअरी, बचत गट(समूह) ऐसे विविध मार्गों से आर्थिक विकास का मार्ग जनता के हात राजकीय नेताओ ने साखर उद्योग से दिया.
     साखर कारखानो में सिर्फ शक्कर का उत्पादन लेते हुए कुछ उपपदार्थ निर्माण करने पर जोर दिया गया. गन्ने पर प्रक्रिया करके सिर्फ १२ टकका अल्कोहोल अन्य उत्पादन लिए जाते है. इन उत्पादनो में अल्कोहोल, इथेनॉल, पार्टीकोलबोर्ड, कागज, बिजली इनका उत्पादन लिया जाता है.
शुगर लॉबी का राजकारण
     काँग्रेस वर्चस्व का एक आधार करके सहकार क्षेत्र के तरफ देखा जाता है. यशवंतराव चव्हाण इन्होंने ग्रामीण विकास और किसान इनका हितरक्षण इन हेतूं से विविध प्रकार के संस्था को प्रोत्साहन देने का धोरण स्वीकृत किया गया. उससे सहकारी साखर कारखाने, सहकारी बँका, सूतगिरनि या अस्तित्व में आये. इन यंत्रनाओ से स्थानिक लेवल पर सत्ता के शासनबाह्य केंद्र अस्तित्व में आये और पक्ष कार्य कर्ताओं को सत्ता के अधिक संधी या उपलब्ध करके देना काँग्रेस को शक्य हुआ. यशवंतराव इनके बाद यही धोरण वसंतराव नाईक, वसंतदादा पाटील शरद पवार इन्होंने इस्तेमाल किया. सहकार क्षेत्र पर के नियंत्रण उत्पादन के साधन से तालुका और जिले के नेतृत्व को जिल्हापरिषद विधानसभा इलेक्शन के वक्त वर्चस्व निर्माण करना आसान गया.
     साखर उत्पादक इनका बड़ा प्रभाव महाराष्ट्र के राजकारण पर और धोरण पर है. उसको दबावगट शुगर लॉबी करके पहचाना जाता है. साखर कारखाना महासंघ यह औपचारिक संघटना तो है पर मुख्यतः स्थानिक नेतृत्व यह साखर के राजकारण से सम्बंधित होता है. साखर उद्योग पर नव-श्रीमंतों का वर्चस्व निर्माण होके ते नए राजकीय नेताओं के निर्मिती का मुख्य स्रोत बने. विधानसभा के २००४ के इलेक्शन का अभ्यास करने पर ६०% लोगों क़ी सहकार क़ी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष पार्श्वभूमी दिखती है. आज सभी क्षेत्र में सहकार साखर कारखानदार है. काँग्रेस में भी अनेक दिग्गज साखर सम्राट है. तो भी राष्ट्रवादी काँग्रेस यह पक्ष सहकार आंदोलन का नेतृत्व लेके है.



सहकार का संस्कार हो
सहकार का मोल जाणने वाले लोग आज भी है. सहकार के अपप्रवृत्तीं को रोखने क़ी जबाबदेहि शासन टाल नहीं सकता. सहकार का सच्चा आधार सामान्य आदमी है. उसे बल मिलना चाहिए.
सहकार यह एक महाशक्ती है, पर वह श्रीमंत राजकारनिओं के हाथ में गई है. यह आन्दोलन अविचारी लोगों के खुटे को बांधा गया है. स्वार्थ और पैसा यह सहकार का सबसे बड़ा शत्रू है, उससे शताऊ पुरे सहकार आन्दोलन को कीड लगी व सहकार के दुश्मन बन गए भ्रष्टाचार के रखवाले... यह शब्द सहकार आन्दोलन को सिचते हुए सरके बाल सफ़ेद हुए आदरणीय बालासाहेब विखे-पाटील इनके है. आबासाहेब वीर पुरस्कार स्वीकृती के समारंभ मे उन्होंने अपनी स्पष्ट भूमिका रखी थी व सहकार आन्दोलन को विळखा डालने वाले अपप्रवृत्तीं के आखोमे झणझणीत अंजन डाला था. पर ऐसा कितनी भी बार अगर अंजन डाला तो भी उनके आखे चुरचुराती नही इतनी कठोरता सहकार के कुच्छ नेताओ मे आई है. आशिया खंड में सहकार कारखानदारी क़ी पायाभरणी करने वाले विठ्ठलराव विखे-पाटील, धनंजयराव गाडगीळ, वैकुंठभाई मेहता ऐसे गगनचुम्बी नाम जिस सहकार चळवळ ने शरीर पर धारण किये, उस सहकार आन्दोलन को मारक स्वाहाकार पैदा हुआ, यह बात खटकने वाली है. सहकार यह एकता क़ी, समविचार क़ी भावना है. उसमे मिलजुल के विकास को चालना देने का उदात्त उद्दिष्ट होता है. सहकार साखर कारखानदारी बढ़नेसे गन्ना लगाई बढ़ी. ग्रामीण भाग में विकास पैसा आया, पर बादमे इसी व्यवस्था को ग्रामीण भाग का शोषण करने के लिए प्रयोग करने के इरादे रचे गए ?
साखर कारखाने कोटि के अलगअलग उपपदार्थ प्रकल्प खड़े कर रहा है, पर किसान के गन्ने को भाव देते समय हरदम क़ी खळखळ चालू रहती है. सहकार में मालकी सामूहिक, पर नियंत्रण एक समूह का. सहकार में स्वायत्तता सबसे महत्त्वपूर्ण, पर उसका रूपांतर स्वाहाकार में किया गया. सहकार संस्थां के चुनाव में कोटी का चुरा होता है. इस चळवळ में नेता बनके, अपने आगे वाले दस पीढ़िया बैठके खाए, इतनी कमाई करने का घातक दृष्टिकोन रखने वाले लोग आये. इससे अनेक सहकार संस्था ये डूब गए ; पर उस संस्थां के बहुतांश संस्थापक गबर ही रहे. उससे जनसामान्य का कल्याण करने वाला आन्दोलन बदनाम हुआ. पर इसपर उपाय नही है क्या?
 सहकार का मोल जाणने वाले लोग आज भी है. सहकार यह संस्कार बनना चाहिए. सहकार में अपप्रवृत्तीं को प्रतिबन्ध करने क़ी जबाबदेहि शासन ताल नहीं सकता!. सहकार का सच्चा आधार सामान्य माणूस है. उसेही बल देना चाहिए. धनिकों के खूटे को बांधे इस आन्दोलन को मुक्त करने के लिए अभी शतकोत्तर दशक में प्रारंभ होना चाहिए.



विशाल परिवार का अनुभव
हमारे सोसायटी में ज्यादातर युवा विवाहित लोग रहते है. सभी लोग एकत्रित आना चाहिए इसलिए हम प्रति फॅमिली से सालाना चंदा जमा करते है. २६ जनवरी, मई व १५ अगस्त इन दिनों में झेंडावंदन, ज्येष्ठ व्यक्तीयों का भाषण, छोटे बालकों के कार्यक्रम, रैली ऐसे कार्यक्रम रखते है. गोकुलाष्टमी का उत्सव भी मानते है. सभी लोग रंगपंचमी का भी आनंद लुटते है. नवरात्र उत्सव यानि आनंद का पर्व होता है. हम पाच दिन का गणेशोत्सव करते है. इस उत्सव में एक दिन प्रसाद का भोजन भी होता है. तिलगुल समारंभ करके सभी जन मूह मीठा करतें है.
 महीने में एक बार सोसायटी के कमिटी क़ी मिटिंग होती है. तब तक्रार पेटी के तक्रारे, सूचनाए आदि पर विचार किया जाता है. कुछ प्रॉब्लम होनेपर वह दूर क़ी जाती है. रोज सायंकाल में सिनियर सिटिझन बातो में व्यस्त होते है. उनकाभी एक मंडल हमने स्थापन किया है. वे पारिवारिक सुखदु:ख के चर्चाये करते है. उससे हमारी सोसायटी यानी एक विशाल परिवार लगता है.


भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले से चल रहा सहकारिता आंदोलन आज विराट रूप धारण कर चुका है और देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसके चलते देशवासी आर्थिक रूप से समृद्ध तो हुए ही हैं, साथ ही बेरोजगारी की समस्या भी बहुत हद तक कम हुई है। एक अनुमान के अनुसार इस समय देशभर में करीब लाख से अधिक सहकारी समितियां सक्रिय हैं, जिनमें करोड़ों लोगों को रोजगार मिल रहा है। ये समितियां समाज जीवन के अनेक क्षेत्रों में काम कर रही हैं, लेकिन कृषि, उर्वरक ओर दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में इनकी भागीदारी सर्वाधिक है। अब तो बैंकिंग के क्षेत्र में भी सहकारी समितियों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है। लेकिन देश में सहकारी आंदोलन राजनीतिक उद्देयों की पूर्ति का साधन बनकर अनेक विसंगतियों के जाल में फंसा दिया गया है।
आर्थिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए संस्थाबद्ध हुए लोग, जो व्यवसाय चलाकर समाज की आर्थिक सेवा तथा संस्था के सभी सदस्यों को आर्थिक लाभ कराते हैं, को सहकारिता या सहकारी समिति कहा गया। इस प्रकार के व्यवसाय में लगने वाली पूंजी संस्था के सभी सदस्यों द्वारा आर्थिक योगदान के रूप में एकत्रित की जाती है। पूंजी में आर्थिक हिस्सा रखने वाला व्यक्ति ही उस सहकारी संस्था का सदस्य होता है। भारत में सहकारिता की यह निश्चिचत व्याख्या सन्१९०४ में अंग्रेजों ने कानून बनाकर की थी। कानून बनने के बाद अनेक पंजीकृत संस्थाएं इस क्षेत्र में कार्य करने के लिए उतरीं। सहकारिता में समाजहित को देखते हुए सरकार द्वारा भी बहुत तेजी से इसकी वृद्धि के प्रयास हुए। सरकार के प्रयास से सहकारी संस्थाओं की संख्या में तो वृद्धि हुई, लेकिन सहकारिता का जो मूल तत्व था वह धीरे-धीरे समाप्त हो गया। सहकारी संस्थाओं में दलीय राजनीति हावी होने लगी। हर जगह लोभ एवं भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया। समितियों के सदस्य निष्कि्रय होते चले गए और सरकारी हस्तक्षेप बढ़ता गया। सहकारिता की इस पृष्ठभूमि, सहकारिता को स्वायत्तता देने की मांग तथा सहकारिता आंदोलन को और बलवती बनाने के लिए सहकार भारती अस्तित्व में आई।
समाप्त

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